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Saturday, August 13, 2022

महाराष्ट्र के इस गांव में किसान और चरवाहे पहनते हैं मुखौटा, जानें क्या है कारण

महाराष्ट्र के इस गांव में किसान और चरवाहे पहनते हैं मुखौटा, जानें क्या है कारण

महाराष्ट्र के ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व (Tadoba Andhari Tiger Reserve) बफर गांवों में तेंदुओं और बाघों के हमलों का खतरा बना रहता है। कई किसान हमले से घायल हो चुके हैं तो आज तक कई ने अपनी जान गवां दी। अब तेंदुओं और बाघों से हमलों से चरवाहों और किसानों को बचाने के लिए नई तरकीब निकाली गई है। यहां पर किसान और चरवाहे चेहरे पर मुखौटा लगाकर वाहर निकलते हैं। ह मुखौटा वे अपने सिर पर पिछे की तरफ लगाते हैं। दरअसल आमतौर पर यह माना जाता है कि बाघ पीछे से हमला करते हैं, पीछे की ओर एक मानव चेहरे का मुखौटा जानवर को यह सोचकर मूर्ख बना सकता है कि यह उसका चेहरा है। यह मुहिम देश के सबसे पुराने वन्यजीव संगठन, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) ने शुरू की है जो मानव फेसमास्क बांट रहे हैं।

चंद्रपुर, विशेष रूप से टीएटीआर बफर में गांव, बाघ-मानव संघर्ष का आकर्षण का केंद्र रहा है। 2021 में, महाराष्ट्र में 81 लोगों की मौत में से 44 अकेले चंद्रपुर में दर्ज किए गए थे। इसी तरह, राज्य में 2022 में हुई 47 मौतों में से जिले में 24 मौतें हुईं। इनमें से ज्यादातर हमले बाघों और तेंदुओं ने किए थे। चरवाहे और किसानों की मजबूरी है बाहर निकलना और इस दौरान वे बाघों और तेंदुओं के हमलों का शिकार होते हैं।

मई-जून से शुरू हुआ सिलसिला
बीएनएचएस के सहायक निदेशक संजय करकरे ने बताया कि यह सब इस साल मई और जून में शुरू हुआ, जब T-149 चीते ने मुल रेंज के चार लोगों को मार डाला। तीन और हमले किसानों पर किए गए। मुल में मरोदा, कारवां, कटवां, पडजारी और भादुरना गांव संघर्ष के केंद्र रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी टीम ने संवेदनशील गांवों का दौरा किया और घटनाओं की बारीकी से निगरानी करते हुए वन अधिकारियों से बात की। संबंधित अधिकारियों ने हमें हस्तक्षेप करने के लिए कहा।

शुरुआत में बांटे गए 100 मुखौटे
पहले चरण में BNHS के संपदा करकरे, सौरभ दांडे, जगदीश धराणे, महेश मोहारले, चरणदास शिंदे और अमय परांजपे ने किसानों की सुरक्षा के लिए 100 इंसानों के मुखौटे बांटे। टीम ने गांववालों को बताया कि कैसे वे तेंदुओं और बाघों के हमलों से बच सकते हैं। उनके दिमाग में चल रहे मिथकों को दूर किया।

दूसरे चरण में 140 मुखौटे दिए गए
टीम ने हॉटस्पॉट गांवों में पोस्टर भी लगाए कि संघर्ष से बचने के लिए क्या करें और क्या न करें। दूसरे चरण में संवेदनशील शिवनी रेंज में 140 फेसमास्क बांटे गए। यह पाया गया है कि बरसात के मौसम में खेतों में फसलें होने के कारण, चरवाहे मवेशियों को चराने के लिए जंगल में 18 किमी तक चले जाते हैं, जिससे वे हमलों की चपेट में आ जाते हैं।

सुंदरवन में यहां यूज होती है तकनीक
पश्चिम बंगाल के सुंदरवन टाइगर रिजर्व में, गांवों में स्थानीय शहद एकत्र करने वाली टीमें बड़ी बिल्लियों के साथ संघर्ष को रोकने के लिए मुखौटा तकनीक का उपयोग करते हैं। इससे पहले 2019 में भी यही तरीका नागपुर संभाग में लागू किया गया था जब एक बाघ बुटीबोरी रेंज में मिहान के पास खड़का में और कलमेश्वर रेंज में भी प्रवेश कर गया था। टीएटीआर के उप निदेशक (बफर) जी गुरुप्रसाद ने कहा कि अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों में फेसमास्क वितरित किए जा रहे हैं। हम परियोजना के परिणामों का विश्लेषण करेंगे और इसे आगे बढ़ाएंगे। मास्क भले ही फुलप्रूफ रणनीति न हो, लेकिन यह लोगों के विश्वास को बढ़ाता है।

करकरे ने कहा कि मास्क होने के बाद भी दुर्घटना हो सकती है, इसलिए टीम ने अन्य सावधानियों पर भी चर्चा की। उन किसानों को फेसमास्क वितरित किए जा रहे हैं जिनके खेत जंगल के किनारे पर हैं, और चरवाहे जंगल में जा रहे हैं। इस पहल के प्रति ग्रामीणों से टीम को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है।
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