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Tuesday, March 15, 2022

राजस्थान: जयपुर: मंदिर का ताला टूटा तो भीलवाड़ा में भड़की सांप्रदायिकता की चिंगारी, जुलूस में लगे मुर्दाबाद के नारों ने किया आग में घी का काम

राजस्थान: जयपुर: मंदिर का ताला टूटा तो भीलवाड़ा में भड़की सांप्रदायिकता की चिंगारी, जुलूस में लगे मुर्दाबाद के नारों ने किया आग में घी का काम 


भीलवाड़ा को राजस्थान का मिनी मैनचेस्टर कहा जाता है। यूं तो किसी जमाने में इसे खनिजों का अजायबघर भी कहा जाता था। लेकिन पिछले 5 दिनों से यहां की टेक्सटाइल इंडस्ट्री (bhilwara textile industry)और माइन्स से ज्यादा जिसकी चर्चा है वो है साम्प्रदायिक सौहार्द (communal harmony) की। इसी सौहार्द पर मानों वर्षों बाद एक बार फिर किसी की नजर लग गई है। अब तक हिंदू-मुस्लिम समुदाय के बीच यहां अमन-चैन की जो बयार बह रही थी। उसी आबोहवा में कुछ लोग सांप्रदायिकता का जहर घोलने की कोशिश में लगे हैं। यही कारण है कि अचानक आपसी रिश्तों में खटास पैदा हो रही है।

ऐसा क्या हुआ? कैसे बदली फिज़ा
भीलवाड़ा की वस्त्र नगरी के अतिरिक्त एक और खास पहचान है। यहां गुर्जर समाज के आराध्य देवनारायण के कई बड़े धर्म स्थल हैं। इनमें से दो धर्मस्थल हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच विवादों में भी रहे हैं। इनमें से ही एक है मांडल का देवनारायण मंदिर। पिछले 45 सालों से यह मंदिर बंद है। विवाद के चलते कोर्ट ने मांडल थानाधिकारी को यहां का रिसीवर नियुक्त कर रखा है। 4 दिन पहले इसी मंदिर का ताला तोड़ दिया गया। इसके बाद फिर से पूरे इलाके में सांप्रदायिक तनाव का माहौल पैदा हो गया।

जयपुर के युवक ने पुलिस को चुनौती दी, फिर मांडल में 11 मार्च को मंदिर का ताला तोड़ा
मांडल में विवादित धर्म स्थल का ताला तोड़ने वाला शख्स जयपुर के बस्सी का रहने वाला गोपाल गुर्जर है। इसी युवक ने कुछ दिन पहले एक समारोह में पुलिस को खुलेआम चुनौती दी थी। कहा था कि 'मैं माण्‍डल में 45 सालों से बंद देवनारायण मन्दिर का गेट खोलूंगा। किसी में दम है तो रोक दिखाना।' ऐसा ही हुआ भी, 11 मार्च को युवक ने धार्मिक स्थल का ताला तोड़ा और ध्वजा लहराने का एक वीडियो भी बनाया। देखते ही देखते यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। हालांकि इसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची और भारी जाब्ता भी तैनात किया गया। आरोपी गोपाल गुर्जर के खिलाफ मामला भी दर्ज किया गया।

ताला टूटने के अगले दिन लामबंद हुआ दूसरा पक्ष, रैली निकाली
मांडल में मंदिर में ताला तोड़कर ध्वजा लहराने वाले दिन ही यानी 11 मार्च को मांडल में समुदाय विशेष ने रैली निकाली। घटना के विरोध में समुदाय विशेष के संगठनों की ओर से निकाली गई इस रैली में गुर्जर समाज के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। लेकिन यहां विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल के साथ साथ आरएसएस के खिलाफ भी जमकर नारे लगाए गए। मुर्दाबाद के नारों से तनावपूर्ण माहौल पैदा हो गया। मौके पर भारी पुलिस जाब्ता तैनात करना पड़ा।

ऐसे बढ़ता गया तनाव, एक के बाद एक कई कस्बे बंद
मांडल में रैली के दौरान हुई नारेबाजी ने माहौल बिगाड़ दिया। इस नारेबाजी के विरोध में अगले ही दिन 13 मार्च को सर्व समाज के आह्वान पर मांडल और बनेड़ा दोनों कस्बे बंद रखे गए। जुलूस में लगाये गये नारों के विरोध में पहले हमीरगढ़, आसींद भी बंद रखा गया। मामला यहीं शांत नहीं हुआ 14 मार्च को गुर्जर समाज और अन्य हिन्दू संगठनों की तरफ से मांडल से लेकर भीलवाड़ा तक पैदल मार्च निकाला गया। इस मार्च में हजारों लोग शामिल हुए। यह मार्च जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचा और वहां एक प्रतिनिधिमंडल ने जिला कलेक्टर आशीष मोदी को अपना तीन सूत्रीय मांग पत्र सौंपा। इसमें धार्मिक उन्‍माद फैलाने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की। वहीं मांडल के विवादित स्‍थल के ताले तोड़ने के मामले में भी निर्दोष लोगों को नहीं फंसाने की मांग भी की गई।

21 साल पहले आसींद में हुआ था बवाल
भीलवाड़ा के आसींद में गुर्जर समाज का सबसे बड़ा आस्था का केंद्र है। यहां समाज के आराध्य भगवान आसींद सवाई भोज मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसी मंदिर परिसर में 2001 से पहले एक मस्जिद का होना बताया जाता है। यहां कथित कलिंद्री मस्जिद के नाम से इस निर्माण को जून 2001 में ध्वस्त कर दिया गया। यह मामला कोर्ट तक भी पहुंचा लेकिन 15 साल बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 16 आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में सभी 16 जनों को दोषी नहीं माना। 21 साल पहले साम्प्रदायिक सौहार्द खराब करने वाली इस घटना के बाद सांप्रदायिक तनाव बढ़ता चला गया। भीलवाड़ा में इसके बाद करीब 7-8 सालों तक सांप्रदायिक तनाव के हालात बने रहे।

अब भीलवाड़ा के बारे में भी जान लेते हैं
मुगलों के खिलाफ मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के संघर्ष को कौन नहीं जानता। मुगलों ने कई बार महाराणा प्रताप को चुनौती दी लेकिन हर बार मुगलों को मुंह की खानी पड़ी। क्योंकि महाराणा प्रताप अकेले नहीं थे, पूरा मेवाड़ उनके साथ था और स्थानीय जनजाति भील भी उनके एक इशारे पर जान न्योच्छावर करने को तैयार रहते थे। ऐसे समृद्ध और गौरवशाली इतिहास के धनी भील इलाके की पहचान उदयपुर रियासत से अलग होकर 1948 में राजस्थान के एकीकरण के बाद भीलवाड़ा के रूप में हुई। 1998 से 2003 तक यहां साम्प्रदायिक तनाव का माहौल रहा। लेकिन अब एक बार फिर पुलिस और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही के चलते यहां का माहौल बिगड़ने की नौबत आ पहुंची है। मंगलवार को भी शाहपुरा कस्बा बंद रखने का आह्वान किया गया है।
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