उत्तर प्रदेश: लखनऊ: कोई 8 दिनों से कर रहा ट्रेन का इंतजार तो किसी ने घर लौटकर बताए वहां के दिल दहला देने वाले अनुभव
गोसाईंगंज निवासी संगीता मिश्रा बीते आठ दिनों से खारकीव में फंसे अपने बेटे सक्षम मिश्रा के सकुशल लौट आने की प्रार्थना कर रही हैं। सक्षम का परिवार लगातार कंट्रोल रूम में संपर्क करके बेटे को वापस लाने की गुहार लगा रहा है। सक्षम वीएन कराजिन मेडिकल यूनिवर्सिटी खारकीव में एमबीबीएस फाइनल ईयर का छात्र हैं। संगीता के मुताबिक, सक्षम ने फोन पर बताया कि हमलों के बाद वह और उसका एक दोस्त मेट्रो स्टेशन में बंकर में छिपे थे। फिर विदेश मंत्रालय की अडवाइजरी के बाद टैक्सी कर खारकीव स्टेशन पहुंच गए। जब बात हुई थी तो ट्रेन में भीड़ होने के कारण उन्हें जगह नहीं मिल पाई थी। बात करते हुए उसके फोन की बैटरी खत्म हो गई।
सक्षम ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है और छात्रों को जाने भी नहीं दिया जा रहा। लड़कियों और महिलाओं को प्राथमिकता मिल रही है। इस कारण लड़कों को बॉर्डर तक पहुंचने के लिए ट्रेन नहीं मिल पा रही।
यूक्रेन से लौटे तीन छात्रों ने सुनाई दहशत की दास्तान
24 फरवरी की रात... करीब दो बज रहे थे। अचानक तेज धमाकों की आवाज आने लगी। फाइटर प्लेन की गर्जना सुनाई देने लगी। कुछ दिनों से युद्ध जैसे हालात बन रहे थे। लिहाजा समझने में ज्यादा वक्त नहीं लगा, लेकिन डर के मारे सभी परेशान हो गए। थोड़ी देर बात पता चला कि रूस ने आर्मी कैंप पर अटैक किया है, जो हॉस्टल से महज पांच किमी दूर था।
यूक्रेन से लौटे ऐशबाग के मोतीझील निवासी मो. वसी ने युद्ध के ये हालात बयां किए तो घरवालों ने खुदा का शुक्र अदा करते हुए बाकी लोगों की सलामती की दुआ मांगी। मो. वसी यूक्रेन के इवानो शहर में मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्र हैं। वसी ने युद्ध के हालात बनने पर घर वापसी की तैयारी कर ली थी, लेकिन इससे पहले ही युद्ध शुरू हो गया। अगले दिन वसी समेत 40 छात्रों ने 40 हजार रुपये में बस की बुकिंग करवाई और रोमानिया बॉर्डर के लिए निकले। भीड़ ज्यादा होने के कारण बस ने 15 किमी पहले उतार दिया। वहां से पैदल बॉर्डर जाना पड़ा। कई घंटे खड़े रहने के बाद 26 फरवरी की देर शाम रोमानिया में प्रवेश पा सके। इसके बाद शेल्टर होम में रुके और 28 की रात 11 बजे फ्लाइट से रवाना हुए, तब जान में जान आई। दिल्ली पहुंचने के बाद वह कैब से मंगलवार रात करीब दो बजे घर पहुंचे।
एटीएम और दुकानों पर उमड़ी भीड़
महानगर के प्रिंस श्रीवास्तव भी बुधवार सुबह पांच बजे घर पहुंच गए, हालांकि वह घर में क्वारंटीन हैं। वह टरनोपिल स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्र हैं। प्रिंस ने फोन पर बताया कि उनका शहर युद्ध क्षेत्र से दूर था, लेकिन वहां भी हॉस्टल में बंकर बनाए गए थे। 25 फरवरी को राशन की दुकानों और एटीएम में लंबी लाइनें लग गईं। वह 26 फरवरी को बस से रोमानिया के लिए निकले। इसमें करीब पांच घंटे लगे। बस ने 15 किमी पहले ही छोड़ दिया था। फिर पैदल ही बॉर्डर जाना पड़ा, जहां दूतावास की काफी मदद मिली। प्रिंस की फ्लाइट 28 फरवरी की रात दो बजे रोमानिया से रवाना हुई।
बॉर्डर पर भीड़, होती है फायरिंग
कैंपबेल रोड निवासी जय सक्सेना भी बुधवार घर लौटे। जय भी टरनोपिल यूनिवर्सिटी में मेडिकल के छात्र हैं। जय ने बताया कि रोमनिया बॉर्डर पर हालात बेहद खराब हैं। बच्चों को घंटों खड़े रहना पड़ रहा है। लोगों को शांत करवाने के लिए सेना के जवान फायरिंग करते हैं, हालांकि दूतावास की टीम काफी मदद कर रही है।
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