राजस्थान: उदयपुर-घास की रोटी खाकर मुगलों के छक्के छुड़ाने वाले 'लड़ईया' की पुण्यतिथि को लेकर कंफ्यूजन, आज जान लीजिए सच
भारत के इतिहास में कई गौरवशाली योद्वा और राजा रहे हैं, जो अपनी मातृभूमि पर संकट आने पर अपने प्राणों को न्यौछावर करने से भी पीछे नहीं रहे। देश के उन्हीं शूरवीरों में एक है महाराणा प्रताप। जिन्होंने कभी अपने राज्य को वापस पाने के लिए लगातार संघर्ष किया। वे कभी झुके नहीं और किसी कीमत पर समझौता नहीं किया। महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि को लेकर अलग-अलग धारणाएं है। विकिपीड़िया पर शो हो रही डेट से आज देशभर में लोग उन्हें याद कर रहे है। सोशल मीडिया में प्रताप के सिद्वान्तों को याद करते हुए उन्हें नमन किया जा रहा है।
विकीपिड़िया पर 19 जनवरी की पुण्यतिथि
असल में विकीपिड़िया पर 19 जनवरी को महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि दर्ज है। वहीं मेवाड़ का इतिहास का स्रोत वीर विनोद में माघ शुक्ल एकादशी ही बताई गई है। मेवाड़ के इस सबसे प्रामाणिक ग्रंथ के लेखक और इतिहासकार श्यामलदास ने यही तिथि बताई है। प्रताप के निधन के दिन एकादशी 29 जनवरी को ही थी।
अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार तिथि 29 जनवरी
मेवाड़ राजघराने के सदस्य लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ का कहना है कि अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार विक्रम संवत् 1653 की माघ शुक्ल एकादशी के दिन तारीख 29 जनवरी थी। मेवाड़ का पूर्व राजपरिवार तिथि के दिन ही पुण्यतिथि मनाता आया है। मेवाड़ में लोग तिथि के हिसाब से ही महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि मानते है।
हल्दीघाटी का हुआ युद्ध सबसे अधिक चर्चित
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 मेवाड़ के कुंभलगढ़ में हुआ। प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े बेटे थे। सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में से एक महाराणा प्रताप थे। वे एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने दुनिया भर में अपनी बहादुरी का डंका बजा रहे अकबर का भी जीना दुश्वार कर दिया था। प्रताप ने बचपन से ही मां जयवंता बाई से से युद्ध कौशल के बारे में जाना। इतिहास में भी महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच हल्दीघाटी का हुआ युद्ध सबसे अधिक चर्चित है। उस युद्व को लेकर भी कई तरह के अलग-अलग तथ्य सामने आए। वो युद्ध भी महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी माना गया। इस युद्ध में न तो अकबर जीत पाया था और ना ही राणा हारे थे।
दरअसल हल्दीघाटी के युद्व के समय भी मुगलों के पास सैन्य शक्ति ज्यादा थी। प्रताप के पास सैनिको को भले कमी थी, मगर उनके जुझारूपन के आगे हजारो सैनिक कुछ नहीं थे। महाराणा प्रताप के पास भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती पर जो कवच था उसका वजन 72 किलो था। इतना ही नहीं उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था।
राजपूत योद्धा अधीनता कभी बर्दाश्त नहीं करता
इस युद्ध में अकबर के 85000 सैनिकों के सामने महाराणा प्रताप के महज 20000 सैनिक थे। कम सेना में भी प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रह। कहा जाता है कि अकबर ने प्रताप से समझौते के लिए शान्ति दूतों को भेजा था, ताकि शांतिपूर्ण तरीके से सब खत्म हो जाए। प्रताप ने हर बार यही कहा कि राजपूत योद्धा अधीनता कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता।
प्रताप का घोड़ा चेतक भी वीरता का प्रतीक
प्रताप की वीरता के साथ उनके प्रिय घोड़े चेतक को भी याद रखा जाता है। चेतक भी उन्हीं की तरह काफी बहादुर था। युद्ध के दौरान मुगल सेना पीछे थी तो चेतक ने प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर कई फीट लंबे नाले को एक छलांग में पार कर दिया। आज भी हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है।
महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे...
कई इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में लिखा है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर की आंखों में भी आंसू छलक आए थे। मुगल दरबार के कवि अब्दुल रहमान ने लिखते है इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है। धन-दौलत खत्म हो जाएंगे, मगर महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे। कई इतिहासकारों ने लिखा कि प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया। प्रताप की अटल देशभक्ति को देखकर अकबर की आंखों में आंसू थे।
1597 में नई राजधानी चावण्ड में उनकी मृत्यु हो गई
कहा जाता है कि जब प्रताप के सिंहासन पर विराजने के समय था। इसके बाद महाराणा ने मेवाड़ के उत्थान के लिए काम किया, लेकिन 11 साल बाद ही 1597 में नई राजधानी चावण्ड में उनकी मृत्यु हो गई।
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