उत्तर प्रदेश :बरेली-दहशत का दूसरा नाम बन गई थी 'शर्मीली', 64 लाख का खर्च... यूं डेढ़ साल बाद पकड़ी गई बाघिन
बरेली जिले के फोतहगंज पश्चिमी में दो दशक से बंद पड़ी रबर फैक्ट्री के परिसर को अपना ठिकाना बनाए बैठी बाघिन शर्मीली को पकड़ने का अभियान डेढ़ साल बाद शुक्रवार को पूरा हो गया। इसके साथ वन विभाग और आसपास के कई गांवों के ग्रामीणों ने राहत की सांस ली। यह बाघिन पिछले डेढ़ साल से ग्रामीणों के लिए दहशत का पर्याय बनी हुई थी। इसने कई लोगों पर हमला किया था।
टैंक में फंस गई थी बाघिन
बाघिन को पकड़ने के लिए वन विभाग ने बहुत बड़ा घेरा बना रखा था। इसके बाद भी वह पकड़ में नहीं आ रही थी, लेकिन संयोगवश ऐसा हुआ कि गुरुवार को सुबह यह बाघिन फैक्ट्री परिसर के लोहे के टैंक में फंस गई और निकल नहीं पा रही थी। इस पर नजर रखने वन विभाग ने जब बाघिन को फंसा पाया तो वन अधिकारियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वन विभाग के अधिकारियों ने उसके टैंक में फंसने के बाद से ही रबर फैक्ट्री के परिसर में डेरा डाल दिया था और उसके पिंजरे में पहुंचने का इंतजार करने लगे। इस बीच ट्रेंकुलाइज टीम भी बुला ली गई।
26 घंटे चला ऑपरेशन फाइनल
गुरुवार सुबह से शुक्रवार सुबह तक वन विभाग की टीमों ने ऑपरेशन फाइनल चलाया। लगातार बाघिन पर नजर जमाए रखी। शुक्रवार को भोर में बाघिन जैसे ही टैंक से आगे निकली, वह मुहाने पर लगे पिंजरे में जा फंसी। इसके बाद लगातार दो घंटे के ट्रेंकुलाइज टॉस्क को पूरा करते हुए विशेषज्ञों ने उसे ट्रेंकुलाइज कर लिया। इस अभियान में पूरे 26 घंटे लगे। बाघिन को कब्जे में करने के बाद वन विभाग के अधिकारी जश्न मनाने लगे।
दुधवा भेजी गई बाघिन
ट्रेंकुलाइज करने के बाद बाघिन को बरेली से वन विभाग की टीम ने विशेषज्ञों की निगरानी में लखीमपुर खीरी के दुधवा नेशनल पार्क की किशनपुर सेंचुरी के लिए रवाना कर दिया। अब यह बाघिन वहीं रहेगी। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह बाघिन डेढ़ साल पहले रबर फैक्ट्री के परिसर में पीलीभीत के जंगलों से आई थी। 1400 एकड़ मे फैले फैक्ट्री के परिसर में काफी हिस्सा जंगलनुमा है। नतीजतन, बाघिन ने इसको अपना ठिकाना बना लिया था और कई बार वह गांवों में घूमने निकल जाती। इस दौरान वह खेत में काम करने वाले 8-9 किसानों को हमला करके घायल कर चुकी है।
हर पल नजर थी, 64 लाख खर्च हुए
बरेली के मुख्य वन संरक्षक ललित वर्मा ने बताया कि चार साल की बाघिन को शर्मीली नाम इसलिए दिया गया था, क्योंकि वह किसी को भी देखते ही भाग जाती थी। वह बेहद चालाक है। उसकी निगरानी के लिए रबर फैक्ट्री के परिसर में 39 कैमरे लगाए गए थे। पांच रेस्क्यू ऑपरेशन असफल होने के बाद फाइनल रेस्क्यू में वह घिर सकी। इन ऑपरेशनों में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ देहरादून के विशेषज्ञों के अलावा कानपुर वन्य जीव प्राणी उद्यान के विशेषज्ञ, वन विभाग के लखनऊ मुख्यालय के विशेषज्ञ, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ दिल्ली, डब्ल्यूटीआई दिल्ली, दुधवा नेशनल पार्क, पीलीभीत टाइगर रिजर्व, बरेली, शाहजहांपुर, बदायूं, पीलीभीत से वन विभाग की टीमें लगाई गई थीं।
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