बिहार: नालंदा के सिद्ध पीठ माता शीतला मंदिर में पूजा होगी, लेकिन नहीं लगेगा मघड़ा में मेला
मघड़ा में स्थापित विश्व प्रसिद्ध सिद्ध पीठ माता शीतला मंदिर में चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी सोमवार को विशेष पूजा होगी। लेकिन, इस बार मेला नहीं लगेगा। रविवार से मेला की शुरुआत होनी वाली थी। जिला प्रशासन ने कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए मेला पर पाबंदी लगा दी है। मंदिर के आसपास पूजन सामग्री, श्रृंगार, खिलौने आदि की दुकानें नहीं सजेंगी। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले भी नहीं लगेंगे। शनिवार को सदर सीओ अरुण कुमार सिंह मघड़ा मंदिर पहुंचे और पंडा कमेटी के लोगों से भीड़ कम से कम लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील की। उन्होंने बताया कि मां शीतला की पूजा अन्य वर्षों की तरह ही श्रद्धालु कर सकेंगे। लेकिन, मेला नहीं लगेगा।
इस बार बन रहा ‘मंगलवार’ का संयोग
पंडा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सुधीर चन्द्र मिश्रा और मंदिर के पुजारी प्रभात कुमार पांडेय बताते हैं कि बहुत सालों बाद इस बार शीतलाष्टमी मेला में विशेष संयोग बन रहा है। हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन मां की विशेष पूजा की जाती है। इसके अलावा हर मंगलवार को भी मां के मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटती है। इस बार चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी सोमवार को है और उसके दूसरे ही दिन मंगलवार। इसलिए माता के दरबार में काफी सालों बाद लगातार तीन दिनों तक पूजा-अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ेगी।
मंदिर के पुजारी जी बताते हैं कि अतिप्राचीन काल से चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी के दिन मघड़ा और इसके आसपास के दर्जनों गांवों में बसिऔड़ा मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस बार भी इन गांवों के लोग रविवार की शाम में खाना बनाने के बाद अपने-अपने घरों की साफ-सफाई करेंगे। सोमवार यानी अष्टमी के दिन किसी घर में चूल्हे नहीं जलेंगे। रात में बनाए गए खाने को लोग बसिऔड़ा के रूप में ग्रहण करेंगे। उन्होंने बताया कि मघड़ा और इसके आसपास के गांवों में साल में चार बार बसिऔड़ा मनाया जाता है। पहला चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी में, दूसरा वैशाख कृष्ण पक्ष सप्तमी में, तीसरा जेठ कृष्ण पक्ष सप्तमी और चौथा असाढ़ कृष्ण पक्ष सप्तमी को।
चैत्र अष्टमी के दिन मां की प्रतिमा हुई थी स्थापित
प्रभात कुमार पांडेय बताते हैं कि मान्यता है कि गांव के एक ब्राह्मण को माता ने रात में स्वप्न दी कि उनकी मूर्ति नदी के किनारे जमीन के अंदर है। उसे गांव के किसी स्थान पर स्थापित कर पूजा-अर्चना करें। इसके बाद ब्राह्मण ने नदी के किनारे स्थित एक कुएं की खुदाई कर मां शीतला की प्रतिमा को निकाला और उसे गांव के तालाब के बगल में स्थापित कर दिया। जिस कुएं से मां की प्रतिमा निकली थी, उसे मिट्ठी कुआं के नाम से जाना जाता है। मघड़ा के ग्रामीण बताते हैं कि मिट्ठी कुआं का पानी कभी नहीं सुखता है और पानी काफी मीठा है। पुजारी बताते हैं कि जिस दिन मां की प्रतिमा कुएं से निकाली गयी थी, उस दिन चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी थी तथा अष्टमी के दिन मां की प्रतिमा की स्थापना हुई थी। उसी समय से मघड़ा में मेले की शुरुआत हुई, जो अबतक जारी है।
जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से तीन किलोमीटर दूर मघड़ा गांव में है विश्व प्रसिद्ध सिद्धपीठ माता शीतला मंदिर। चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी सोमवार को भक्त मां के दरबार आएंगे। वैसे, रविवार सप्तमी से ही यहां तीन दिवसीय मेला शुरू होने वाला था। लेकिन कोविड के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए मेला कैंसिल कर दिया गया है। मंदिर के बगल के तालाब की साफ-सफाई करायी जा रही है। पूजा-अर्चना से पहले तालाब में स्नान करने की परंपरा है। हालांकि, कोरोना का इफेक्ट भी इस बार दिख रहा है। मंदिर के आसपास पूजन सामग्री, श्रृंगार, खिलौने आदि की दुकानें नहीं सजी हैं। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले भी नहीं लगे हैं.
#vsknews
No comments:
Post a Comment