नई दिल्ली/लखनऊ:कांवड़ मार्ग में क्यूआर कोड विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड सरकारों से एक हफ्ते में मांगा जवाब
कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों को क्यूआर कोड स्टिकर लगाने का मामला गरमाया हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को सरकारी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया। इससे तीर्थयात्रियों को विक्रेताओं की जानकारी मिल सकेगी। न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने याचिका पर अब अगले मंगलवार को सुनवाई होगी।
जस्टिस एमएम सुंदरेश की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले में राज्य सरकारों से कहा है कि वह एक हफ्ते में जवाब दाखिल करें। कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाद्य विक्रेताओं को उनके बैनरों पर क्यूआर कोड स्टिकर लगाने के सरकारी निर्देशों को चुनौती दी गई है। इन क्यूआर कोड्स के जरिए तीर्थयात्रियों को विक्रेताओं की व्यक्तिगत जानकारी तक पहुँचने की सुविधा मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह अगले मंगलवार को मामले की सुनवाई करेगा।
दो सप्ताह का मांगा समय
मंगलवार को जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई तब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की ओर से पेश अडिशनल एडवोकेट जनरल जतिंदर कुमार सेठी ने जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। लेकिन याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शादन फरासत ने कहा कि यह मामला संवेदनशील है क्योंकि कांवड़ यात्रा अगले दस-बारह दिनों में समाप्त हो जाएगी। इसके बाद पीठ ने सहमति जताई कि मामले को अगले सप्ताह सुना जाएगा। अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह और हुजेफ़ा अहमदी ने पैरवी की।
धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के लिए ये निर्देश: याचिकाकर्ता
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में उन सभी सरकारी निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की गई है, जो कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों के मालिकों या कर्मचारियों की पहचान सार्वजनिक रूप से उजागर करने की बात करते हैं। याचिकाकर्ता प्रोफेसर अपूर्वानंद और सामाजिक कार्यकर्ता आकार पटेल की ओर से दलील दी गई है कि सरकार द्वारा इस वर्ष जारी किए गए नए निर्देश, सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल के उस अंतरिम आदेश को दरकिनार करने का प्रयास हैं, जिसमें कहा गया था कि किसी विक्रेता को अपनी पहचान बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि इन निर्देशों का उद्देश्य धार्मिक प्रोफाइलिंग करना है और इनका कोई वैध कानूनी आधार नहीं है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये निर्देश धार्मिक ध्रुवीकरण और भेदभाव को बढ़ावा देने के लिए दिए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दिए ये तर्क
नए निर्देशों के अनुसार, कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी भोजनालयों पर ऐसे क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य किया गया है, जो मालिकों की पहचान को उजागर करते हैं। यह वही भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग है, जिसे इस माननीय न्यायालय ने पूर्व में स्थगित कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है कि खाद्य विक्रेताओं को कानूनी रूप से केवल अपने लाइसेंस परिसर के अंदर प्रदर्शित करने होते हैं, न कि बैनरों और होर्डिंग्स पर सार्वजनिक रूप से। सरकार द्वारा मालिक और कर्मचारियों की पहचान को सार्वजनिक रूप से उजागर करने के निर्देश, गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन हैं। याचिका में यह भी आशंका जताई गई है कि इस तरह की सार्वजनिक पहचान विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाले विक्रेताओं के खिलाफ भीड़ हिंसा को बढ़ावा दे सकती है।
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