हरियाणा: करनाल-वैज्ञानिकों ने लिक्विड गोल्ड (खीस) से रोग प्रतिरोधक तत्व आईडेंटिफाई किए
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने शोध से कोलोस्ट्रम (लिक्विड गोल्ड) अर्थात प्रसव के तुरंत बाद पशुओं के स्तनाें से निकलने वाले खीस के रोग प्रतिरोधक तत्वों को आईडेंटिफाई किया है। वैज्ञानिकों ने खीस से मैक्रोफेज एक्टिवेशन फैक्टर को अलग से निकालने में सफलता हासिल की है। भविष्य में खीस से निकाले गए यह तत्व मनुष्यों की गंभीर बीमारियों के इलाज में प्रयोग होंगे। इसके प्रयोग से न केवल रोगप्रतिराेधक क्षमता बढ़ेगी बल्कि बुढ़ापा भी देरी से आएगा। क्योंकि एंटीबायोटिक दवाओं की खोज से पहले प्रसव के तुरंत मिलने वाले पशुओं के खीस का प्रयोग मनुष्य की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है।
यहीं से वैज्ञानिकों के पास इस बात का आइडिया आया कि क्यों न खीस के रोग प्रतिरोधक तत्वों को अलग से आईडेंटिफाई किया जाए। अब राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा स्वीकृत एक परियोजना के तहत प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार डांग और उनकी टीम के साथी डॉ. एसएस लठवाल और डॉ. राजीव कपिला ने गायों के खीस पर तीन साल के शोध में सफल परिणाम हासिल किए हैं।
कोलोस्ट्रम की गुणवत्ता में सुधार को गायाें काे खिलाया विटामिन
वैज्ञानिकों की टीम ने गायों के बयाने से ठीक एक महीने पहले आवश्यक विटामिन और खनिज खिलाकर कोलोस्ट्रम की गुणवत्ता में सुधार करने की कोशिश की है। इसके भी परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। क्योंकि कोलोस्ट्रम की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि के अलावा, नवजात बछड़ों की वृद्धि और स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा है। वैज्ञानिक प्रतिरक्षा कोशिकाओं और कोलोस्ट्रम के कुछ अद्वितीय प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले अणुओं को भी अलग कर रहे हैं और इम्यूनोसप्रेस्ड (प्रतिरक्षादमन) चूहों और बीमार बछड़ों की कोशिकाओं पर उनकी गतिविधि का अध्ययन किया है। यह देखा है कि कोलोस्ट्रम घटक बीमार चूहों और अस्वस्थ बछड़ों के शरीर के वजन व स्वास्थ्य में अपेक्षा के अनुरूप सुधार हुआ है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी नवजात शिशु के लिए की सिफारिश
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर नवजात शिशु के लिए संपूर्ण और संपूर्ण भोजन के रूप में कोलोस्ट्रम की सार्वभौमिक रूप से सिफारिश की गई है। कोलोस्ट्रम में पाए जाने वाले सबसे प्रचुर इम्युनोमोडायलेटरी अणु में इम्युनोग्लोबुलिन जी, इम्युनोग्लोबुलिन एम और इम्युनोग्लोबुलिन ए शामिल हैं, जहां इम्युनोग्लोबुलिन जी कुल इम्युनोग्लोबुलिन का 65-90 प्रतिशत है।
कोलोस्ट्रम कई अन्य प्रतिरक्षा घटकों जैसे, विटामिन, पूरक प्रोटीन, प्रोलाइन- समृद्ध पॉलीपेप्टाइड्स और प्रतिरक्षा कोशिकाओं जैसे न्यूट्रोफिल, लिम्फोसाइट्स आदि का एक बहुत समृद्ध स्रोत है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निष्क्रिय हस्तांतरण के माध्यम से नवजात बछडें की प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।
बछड़ा मृत्यु दर 15 से घटकर 2 प्रतिशत पर आई
वैज्ञानिकों के प्रयास से कोलोस्ट्रम की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि के अलावा, नवजात बछड़ों की वृद्धि और स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है। संस्थान के निदेशक डॉ. मनमोहन सिंह ने बताया कि एनडीआरआई नवजात बछड़ों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए लगातार काम कर रहा है, क्योंकि स्वस्थ बछड़े का मतलब आने वाली पीढ़ियों से अधिक दूध और किसानों को अधिक लाभ है।
उन्होंने कहा कि संस्थान के झुंड में बछड़ा मृत्यु दर आज 15 से घटकर 2 प्रतिशत रह गई है। कोलोस्ट्रम एक प्राकृतिक और 100 प्रतिशत सुरक्षित खाद्य पूरक है। भविष्य में यह सुपरफूड मानव पोषण में भी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है।
क्या होता है कोलेस्ट्रम अर्थात खीस
कोलोस्ट्रम (खीस), जिसे तरल सोने के रूप में भी जाना जाता है, प्रसव या बयाने के तुरंत बाद सभी स्तनधारियों की स्तन ग्रंथि से उत्पन्न होने वाला पहला पीला गाढ़ा स्राव है। कई शताब्दियों से कोलोस्ट्रम का उपयोग पारंपरिक रूप से हमारी आयुर्वेदिक चिकित्सा के साथ-साथ भारत के प्राचीन हिंदू ऋषियों (आध्यात्मिक नेताओं) द्वारा औषधीय और आध्यात्मिक दोनों उद्देश्यों के रूप में किया जाता रहा है। एंटीबायोटिक दवाओं की खोज से पहले, कोलोस्ट्रम का उपयोग प्राकृतिक प्रतिरक्षा-बढ़ाने वाले एजेंट के रूप में किया गया है।
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