उत्तर प्रदेश: लखनऊ-नदियां हुईं मनमौजी, उत्तराखंड में भारी तबाही के बाद अब नई चुनौती, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में हो सकता है असर
उत्तराखंड में हो रही मूसलाधार बारिश का असर उत्तर प्रदेश के जिलों में दिखने लगा है। कुमाऊं के पहाड़ों में तबाही मचाने के बाद वहां स्थितियां सामान्य होने लगी हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश के कई जिलों में चिंता बढ़ गई है। नदियां उफान पर हैं। लगातार जल स्तर के साथ प्रशासन की चिंता भी बढ़ती जा रही है। पिछले हफ्ते उत्तराखंड में हुई भारी बारिश के कारण राज्य की चार प्रमुख नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया है।
नदी चैनलों और इस परिवर्तन के प्रभाव पर अब आईआईटी-रुड़की की मदद ले रहा है। 17 अक्टूबर से विनाशकारी बारिश के बाद वन विभाग ने पाया कि कुमाऊं-कोसी, गौला, नंधौर और डबका में उफनती नदियों ने अपना मार्ग बदल दिया है। कुछ क्षेत्रों में यह लोगों की बस्तियों की ओर बहने लगी हैं। वहीं, अन्य क्षेत्रों में, परिवर्तन ने वन विभाग के खनन और पेट्रोलिंग जैसे कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
'उत्तराखंड में सेटलमेंट गलत'
पर्यावरणविदों का कहना है कि नदी किनारे अतिक्रमण ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। पर्यावरणविद् डॉ. काशिफ इमदाद ने कहा कि समस्या नदियां नहीं हैं। नदियों का रास्ता बदलना सामान्य हैं। उत्तराखंड में सेटलमेंट गलत बने हैं। 2013 में सरकार एक ईको सेंसटिव जोन कॉन्सेप्ट के साथ आई थी। इसके तहत उत्तराखंड में नदियों को दोनों ओर 50-50 मीटर की दूरी पर कोई डिवलपमेंट नहीं होना था। हालांकि लोगों के विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया था।
प्रॉपर तरीके से काम करने की जरूरत
प्रफेसर वेंकटेश दत्ता ने बताया कि यह मानव निर्मित आपदाएं हैं। सूखा और बाढ़ एक चक्र है। नदियों को बांध दिया जाएगा उसे रास्ता नहीं मिलेगा तो वह कहीं तो निकलेगी। फ्लड प्लेनिंग जोनिंग ऐक्ट नहीं बनाएंगे तब तक ऐसे ही होगा। मतलब पिछले 100 साल में जहां तक बाढ़ आई है। उसे जोनों बांटना। जोन-1 में खेती, जोन-2 में मैदान...इसी तरह से जोनों में बाटना। नदियों को रास्ता नहीं मिल रहा है। दक्षिण में वेटलैंड्स और तालाब खत्म हो रहे हैं। ये तालाब और वेटलैंड नदियों को समा लेते थे अब खत्म हो रहे हैं।
पर्यावरणविद् हिमांशु ठक्कर ने कहा, नदियों ने अपना मार्ग नहीं बदला है या नए चैनल नहीं लिए हैं, वे बस अपने ही स्थान पर बह रही हैं। नदी के किनारों पर इंसानों ने कब्जा कर लिया है। इस महीने उत्तराखंड के तमाम इलाकों में बारिश के कारण नदियां उफान पर थीं। बारिश के कारण पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं हुईं। भारी बारिश की वजह से देहरादून में रानीपोखरी-ऋषिकेश हाइवे पर एक पुल बाढ़ के पानी में बह गया था।
बाईं ओर बहने वाली नदियां दाईं ओर बहने लगीं
2013 में आई केदार आपदा ने मन्दाकिनी, अलकनन्दा, गंगा, काली व यमुना जैसी नदियों ने अपने बहाव के साथ एक संस्कृति व सभ्यता को भी बहा के ले गई हैं। इन नदियों के बहाव क्षेत्र में जहां कभी सिंचित भूमि व पशु चुगान के खर्क होते थे, आस-पास घाटियों में छोटी-छोटी बसासते हुआ करती थीं अब वे रह नहीं गए हैं, नदियां कभी बाईं ओर बहती थीं तो वर्तमान में वे दाईं ओर बह रही हैं।
नहीं चेते तो होगा बड़ा नुकसान
वैज्ञानिक कई बार प्राकृतिक संसाधनों का गलत दोहन करने को लेकर चेतावनी जारी कर चुके हैं। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा ऐसा करने से बढ़ता ही जा रहा है। वैज्ञानिकों ने कहा कि अगर पर्यावरण को लेकर अब भी नहीं चेते तो मानव को बड़ा नुकसान हो सकता है। प्राकृतिक संस्थानों के साथ खिलवाड़ बंद होना चाहिए।
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