बस्ती। कोरोना संकट काल के पहली लहर में आम आदमी की सेवा के लिये बढ चढ कर हिस्सा लेने वाले अनेक सामाजिक संगठन इस बार चुप्पी साधे हुये हैं। यही नहीं रेड क्रास सोसायटी ने बेजुबान बंदरों तक को केला, चना उपलब्ध कराया था किन्तु इस पर न जाने क्यों रेड क्रास सोसायटी के जिम्मेदार भी चुप्पी साधे हुये हैं।
रेड क्रास सोसायटी के सचिव कुलवेन्द्र सिंह मजहबी से जब इस सम्बन्ध में पूंछा गया तो उन्होने बताया कि रेड क्रास सोसायटी अपना कार्य बखूबी से कर रहा है। कोरोना बहुत गंभीर स्थिति में है जिससे सदस्य पिछली लहर की भांति सक्रिय नहीं हैं। जो कर्मठ कार्यकर्ता थे उनमें से कुछ कोरोना की चपेट में आ गये है। यह पूंछे जाने पर कि इस बार मास्क, सेनेटाइजर, सेनेट्री पैड के वितरण एवं रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की सुविधा की दिशा में रेड क्रास सोसायटी की क्या भूमिका है सचिव कुलवेन्द्र सिंह मजहबी ने बताया कि यह निर्णय प्रशासन का होता है जिस पर रेड क्रास सोसायटी कार्य करती है। जैसा निर्देश मिल रहा है कार्य किया जा रहा है।
बतातें चले कि कोराना की पहली लहर में संकट की स्थिति में पूरा समाज सहयोग के लिये उमड़ पड़ा था। बाहर से आने वाले यात्रियों की सेवा, भोजन, नाश्ता से लेकर जूता, चप्पल तक लोगों में बांटा गया। बडी संख्या में लोगोें ने मास्क, सेनेटाइजर आदि वितरित किया। इस दूसरी खौफनाक लहर में समाजसेवी चुप्पी साधे हुये हैं। अन्नपूर्णा रसोई द्वारा जहां भूखों को भोजन दिया गया वहीं इस पर ऐसी कोई सक्रिय गतिविधि दिखायी नहीं पड़ रही है। भाजपा, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस सहित अनेक राजनीतिक दलों द्वारा जहां गरीबों की मदद किया गया था वहीं तत्कालीन जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन को चेक के साथ ही विभिन्न माध्यमों से नकद राशि देकर सहयोग करने वालों की लम्बी सूची थी। कोरोना की दूसरी लहर में परस्पर सहयोग की वह भावना दिखाई नहीं पड़ रही है। इस बार आक्सीजन , जीवन रक्षक दवाओं, अस्पतालों में बेड का अकाल सा पड़ गया है। मौतों की संख्या लगातार बढ रही है इसके बावजूद समाजसेवी जाने कहां सो से गये हैं और मानवता कराह रही है। जन प्रतिनिधियों की भूमिका निरीक्षण, पत्र भेजने तक सिमटी हुई है। इस बदले परिदृश्य से लोग अवाक है।
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