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Saturday, January 30, 2021

जानकारी:बढ़ती बुद्धि और घटती समझ

 जानकारी:बढ़ती बुद्धि और घटती समझ 

प्रोफेसर कहते हैं कि time of test, family is best.” .
अथर्ववेद में पति-पत्नी परमात्मा से प्रार्थना करते हैं- 'हम पति-पत्नी एक-दूसरे को प्यार भरी दृष्टि से देखें। मुख से सदैव मीठे वचन बोलें। एक-दूसरे के हृदय में रहें। हम दो शरीर और एक मन हों। उपनिषद कहते हैं 
पितृभिः ताडितः पुत्रः शिष्यस्तु गुरुशिक्षितः ।
धनाहतं सुवर्णं च जायते जनमण्डनम् 
पुरुष और स्त्री परिवार की नींव हैं और यह नींव जितनी मजबूत होती है उतना ही परिवार खुशहाल होता है। पुरुष और नारी एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों का मिलन जहां परिवार व समाज तथा संसार का आधार रखता है वहीं दोनों का टकराव परिवार और समाज में भी टकराव व तनाव पैदा करता है। व्यक्तिगत सुख-सुविधा, आशा-निराशा को किनारे करते हुए जब पुरुष और नारी मिलकर कर्म करते हैं, तो घर के आंगन में खुशहाली, समृद्धि के साथ-साथ सुख-शांति के वह फूल खिलते हैं जिसकी महक घर की चारदिवारी से बाहर निकल समाज को भी आनंदित करती है।
 "मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले"
समय के साथ परिवार की नींव कमजोर हुई, कारण पुरुष और नारी मैं और मेरे तक सीमित होते गए। अब प्राथमिकता परिवार का हित न होकर एक व्यक्ति विशेष का होकर रह गया। अब आशा-निराशा का चक्र व्यक्ति तक सीमित होने लगा है। सुख और दु:ख परिवार का न होकर एक पुरुष या औरत का हो गया है।
ओशो कहते हैं - तुम्हारा प्रेम है क्या? बस वैसा ही है जैसा मछलीमार मछली पकड़ने के लिए काटे पर आटा लगाता है। मछली फंस जाती है, आटे के कारण। मछलीमार का प्रयोजन मछली को आटा खिलाना नहीं है; मछलीमार का प्रयोजन—आटा खाने में काटा फंस जाए उसके मुंह में, बस। आटा तो तरकीब है। तुम पूछते हो—जिसे चाहो वह ठुकराता क्यो है;तुम्हारे चाहने में काटा है। तुम सोचते हो—आटा ही आटा है। लेकिन तुम जरा गौर से विचारो, तुमने जिसको चाहा उसका जीवन दुखमय बना दिया या नहीं? जिसने तुम्हें चाहा, उसने तुम्हारा जीवन दुखमय बना दिया या नहीं? इस प्रेम के नाम पर जो चलता है, इसमें फूल तो कभी—कभार खिलते हैं, काटे ही काटे पलते हैं। कभी सौ में एकाध मौके पर कभी फूल की झलक मिली हो तो मिली हो, निन्यानबे मौकों पर तो काटा चुभा और बुरी तरह चुभा और नासूर बना गया, और घाव छोड़ गया। तुम्हारी चाहत शुद्ध नहीं है, इसलिए लोग बचना चाहते हैं।
जिससे शादी की, उससे झंझट हो जाती है;उससे सब प्रेम का नाता टूट जाता है, यह बड़े मजे की बात है। प्रेम का नाता जिससे बनाया, विवाह किया, शादी की—वह प्रेम का नाता है —मगर जिससे विवाह किया, उससे प्रेम का नाता टूट जाता है। यह बड़ी अजीब दुनिया है। यह बड़ी चमत्कार से भरी दुनिया है। प्रेम का नाता बनाते ही प्रेम टूट जाता है। क्योंकि प्रेम के नाम पर जो सब सांप—बिच्छू छिपे बैठे थे अभी तक पिटारे में, सब निकलना शुरू हो जाते है। इधर विवाह की बासुरी बजी कि उधर निकले सब सांप—बिच्छू। वे सब जो छिपे पड़े थे, कहते थे—बच्चू जरा रुको, जरा ठहरो, ठीक समय आने दो, एक बार गठबंधन हो जाने दो, एक बार छूटना मुश्किल हो जाए, फिर असलियत प्रकट होती है। तुम्हारा भी सब रोग बाहर आता है, जिससे तुमने प्रेम किया उसका भी सब रोग बाहर आता है, धीर— धीरे पति—पत्नी के बीच सिवाय रोग के आदान—प्रदान के और कुछ भी नहीं होता।
रिश्तों की डोर बहुत नाज़ुक होती है, छोटी सी बात भी इस डोर को उलझा देती है. जिस रिश्ते को बनाने में सालों लग जाते हैं, उसे टूटने में एक मिनट भी नहीं लगता है. कभी-कभी कुछ रिश्ते आपसी समझ और अहंकार की बलि भी चढ़ जाते हैं. इसलिए अपनी Relationship को बचाने के लिए आपको ख़ुद पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. ख़ुद की ग़लती को पहचानने की ज़रूरत है, ताकि अपने टूटते रिश्ते को बचा पाएं.
(अनुराग पाठक)

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