जानें क्यों करते हैं होलिका दहन, पढ़ें भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा
होलिका दहन पौराणिक कथा:
होली के संबंधित में पौराणिक कथा है कि हिरण्यकश्यप नाम का दानव राजा खुद को देवता समझता था और सभी को अपनी पूजा करने को कहता था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का उपासक भक्त था। हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को बुलाकर भगवान विष्णु का नाम न जपने को कहा तो प्रहलाद ने कहा, पिताजी! परमात्मा ही समर्थ है, प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है। इस बात को सुनकर अहंकारी हिरण्यकश्यप क्रोध से भर गया और पुत्र प्रहलाद को कई तरीकों से मरवाने का प्रयास किया लेकिन हर बार प्रभु विष्णु ने उसकी जान बचा ली।
इसके अलावा होली को लेकर राक्षसी ढुंढी, राधा-कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से संबंधित पौराणिक कथाएं हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते है। साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने होली के दिन ही पूतना नामक राक्षसी का वध किया था, इसी खुशी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
कैसे किया जाता है होलिका दहन?
होलिका दहन वाली जगह पर कुछ दिनों पहले एक सूखा पेड़ रख दिया जाता है. होलिका दहन के दिन उस पर लकड़ियां, घास, पुआल और उपले रखकर अग्नि दी जाती है. होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में परिवार के किसी वरिष्ठ सदस्य से अग्नि प्रज्जवलित करानी चाहिए. होलिका दहन को कई जगह छोटी होली भी कहते हैं. इसके अगले दिन एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली का त्योहार मनाया जाता है.
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