लाह की खेती से लखपति झाखंड की महिलाएं, 73 हजार से ज्यादा परिवारों को फायदा
झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की महिला किसान लाह की खेती से किस्मत को संवार रही हैं। जीवन स्तर को बेहतर बना रही हैं। लाह की खेती से महिलाओं के लिए अच्छी आमदनी का जरिया भी बन गया है। राज्य सरकार भी इनकी मदद कर रही है।
लाह की खेती के लिए स्पेशल ट्रेनिंग
झारखंड के ग्रामीण महिलाओं को लाह की खेती को लेकर सरकार ट्रेनिंग दिला रही है। राज्य की 73 हजार से ज्यादा ग्रामीण परिवारों को लाह की आधुनिक खेती से जोड़ा गया है। इनमें अधिकतर गरीब और दूर-दराज इलाकों रहने वाले परिवार हैं। साल 2020 में करीब दो हजार मीट्रिक टन लाह का उत्पादन ग्रामीण महिलाओं ने किया था। यही वजह है कि राज्य सरकार लाह की खेती को कृषि का दर्जा देने में जुटी हैं। जिससे राज्य की ग्रामीण महिलाओं को वनोपज आधारित आजीविका से जोड़कर आमदनी बढ़ाया जा सके। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का मानना है कि भारत आत्मनिर्भर देश तभी बनेगा, जब ग्रामीण क्षेत्र का सशक्तिकरण होगा।
महिला किसानों को सरकार से मदद
हेमंत सोरेन ने कहा कि 'राज्य सरकार लाह की खेती को कृषि का दर्जा देगी। इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य भी तय करेगी। किसानों को स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाना सरकार का संकल्प है। इस बाबत कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसके जरिए किसानों को अनुदान, ऋण और अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।' कल तक जिन महिलाओं का जीवन घर की चारदिवारी में गुजरता था और खुद की पहचान बनाने से वे वंचित थीं। राज्य सरकार इन महिलाओं को पारंपरिक पेशे में ही स्थानीय आजीविका के बेहतर अवसर मुहैया करा रही है। इससे महिलाओं की वनोपज-उद्यमी के रूप में पहचान बन रही है।
रंजीता पर झारखंड को नाज
पश्चिमी सिंहभूम के गोईलकेरा प्रखंड के रूमकूट गांव की रंजीता देवी उन महिलाओं में से एक हैं जो लाह की खेती से सालाना तीन लाख रुपए तक की आमदनी कर रही हैं। रंजीता कहती हैं, दूर का इलाका होने के कारण उनकी आजीविका मुख्यतः जंगल और वनोपज पर निर्भर है। उनके परिवार में पहले भी लाह की खेती की जाती थी, लेकिन सरकार से प्रोत्साहन, वैज्ञानिक विधि से लाह की खेती करने, सही देख-रेख के साथ-साथ सही मात्रा में कीटनाशक के छिड़काव से उपज बढ़ाने के बारे में जानकारी मिली।
JSLPS (Jharkhand State livelihood Promotion society) के माध्यम से लाह की आधुनिक खेती से जुड़ा ट्रेनिंग लिया। सरकार की ओर से लाह का बीज भी उपलब्ध कराया गया। आज लाह की खेती में रंजीता देवी को लागत के रूप में नाममात्र खर्च करना पड़ता है, लेकिन उससे कई गुना ज्यादा उपज और मुनाफा हो रहा है। रंजीता साल भर में दो बार बिहन लाह की खेती करती हैं और लाह की खेती के जरिए उनकी आय साल दर साल बढ़ रही है। पिछले वर्ष रंजीता ने 300 किलो बिहन लाह बीज के रूप में लगाया, जिससे उन्हें 15 क्विंटल लाह की उपज हुई और उससे उन्हें तीन लाख रुपए की आमदनी हुई।
लाह के लिए 460 कलेक्टिंग सेंटर
महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना के अंतर्गत महिला किसानों को लाह उत्पादन, तकनीकी जानकारी, प्रशिक्षण और बिक्री हेतु बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है। महिला किसान उत्पादक समूहों के माध्यम से लाह की सामूहिक खेती और बिक्री कर रही हैं। महिलाओं को आवासीय प्रशिक्षण के जरिए लाह की उन्नत खेती के लिए प्रेरित और लाह की खेती कर रहे किसानों के अनुभवों से भी उन्हें रू-ब-रू कराया जाता है।
लाह किसानों को उचित बाजार उपलब्ध कराने के लिए राज्य भर में 460 लाह कलेक्टिंग सेंटर और 25 ग्रामीण सेवा केंद्र बनाया गया है। ग्रामीण महिलाओं द्वारा संचालित इन संस्थाओं के माध्यम से लाह की खेती कर रहे किसान अपनी उपज को एक जगह इकठ्ठा करते हैं और फिर ग्रामीण सेवा केंद्र के जरिए उसकी बिक्री की जाती है। इस तरह रंजीता जैसी हजारों ग्रामीण महिलाएं आज लाह की वैज्ञानिक खेती से जुड़कर अच्छी कमाई कर रही हैं।
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