संपादकीय : जाति व्यवस्था के आधार पर कैदियों से शौचालय साफ करवाना ..... अमानवीय
राजस्थान उच्च न्यायालय के जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस देवेंद्र वुशवाहा की बेंच ने सरकार से जेलों में जाति विशेष के लोगों से शौचालय साफ करवाए जाने की घटना पर याचिका की सुनवाईं करते हुए पूरे जेल मैनुअल को सुधार के लिए कहा है।यह अमानवीय प्रथा राजस्थान ही नहीं, पूरे देश की जेलों में है।
दिल्ली की तिहाड़ जेल में एक एनजीओ द्वारा सर्वे पर देखा कि वहां पर कैदियों के बाल बहुत बढ़े हुए हैं इस विषय पर जेल निरीक्षक ने जवाब दिया कि सर आजकल नाईं कैदी जेल में नहीं आ रहे हैं तो इनके बाल कैसे कटवाएं , शौचालयों की सफाईं की व्यवस्था के विषय उन्होंने बताया कि जब कोईं जेल में आता है तो उसका रिकार्ड तैयार करते समय उनकी जाति भी लिखते हैं और उनकी जाति के आधार पर उन्हें काम सौंपते हैं जैसे बाल्मीकि को शौचालय की सफाईं, नाईं से बाल कटवाना, धोबी से कपड़े धुलवाना और उसी तरहे से माली आदि का काम बांटते हैं।
राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल की टीम ने सजायुक्त कैदियों से बातचीत की तो पता चला कि देश की जेलों में आज भी ब्रिटिश इंडिया के जमाने के जेल मैनुअल प्रौक्टिस में चल रहे हैं और कैदियों को उनकी निम्न जाति का होने के कारण उनसे शौचाल्य आदि साफ करवाया जाता है। देश की जेलों में ही नहीं सरकारी कार्यांलयों, अस्पतालों, निगमों या अन्य संस्थाओं में सफाईं कर्मचारी बाल्मीकि जाति के होते हैं और देश की राजधानी दिल्ली ने हर साल गटर और बंद नालों की सफाईं करते समय सैकड़ों सफाईं कर्मचारी मर जाते हैं और उनके परिवार को उनकी मौत पर कोईं मुआवजा नहीं मिलता, भारत- पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर अन्य किसी देश में सफाईं कर्मचारियों को न इतनी घृणित दृष्टि से देखा जाता है और न आर्थिक दृष्टि से उनकी हालत इतनी दयनीय होती है।इसका कारण है कि यूरोपीय या अन्य देशों में सफाईं कर्मचारी किसी जाति विशेष के नहीं होते।
सरकार के उच्च अधिकारियों को भी यह भ्रम होता है कि सरकारी कार्यांलयों में जो सफाईं कर्मचारियों को लगाया जाता है वो सभी बाल्मीकि जाति के होते हैं। नब्बे के दशक की घटना है जब मैं औदृाोगिक विकास विभाग में पोस्टेड था, एक सफाईं कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मृत्यु होने पर उसके बच्चे का अनुकम्पा के आधार पर नियुक्ति का मामला आया और संबंधित अनुभाग से एक प्रापोजल गया कि उसे सफाईं कर्मचारी नियुक्त कर दिया जाए। क्योंकि ‘सफाईं कर्मचारी पोस्ट में अनुसूचित जातियों (बाल्मीकि) के लिए 100 प्रातिशत सीट आरक्षित होती हैं।’ यह नोट अनुभाग के अपर सचिव, उपसचिव, संयुक्त सचिव के द्वारा अनुमोदित कर दिया गया परन्तु विभाग के अतिरिक्त सचिव द्वारा ‘व्यवस्था अनुभाग’ को आरक्षण की दृष्टि से पुन: एग्जामिन करने के लिए फाइल वापस भेज दी , सवाल यह है कि इतने उच्च अधिकारी भी इस भ्रम में रहते हैं कि सफाईं कर्मचारियों की पोस्टें बाल्मीकियों के लिए आरक्षित होती हैं और सफाईं कर्मचारी का लड़का बाद में उसकी जगह कर्मचारी ही बनेगा। जिस बाल्मीकि बस्ती में महात्मा गांधी अपने जीवन में कईं महीने रहे और यह शिक्षा थी कि सफाईं का काम घृणित नहीं है पर त्रासदी यह है कि दिल्ली स्थिति बाल्मीकि मंदिर बस्ती में 90 प्रातिशत लोग सफाईं कर्मचारी हैं और जो बच्चा पैदा होता है वह शिक्षा की तरफ ध्यान देने के बजाय अपना भविष्य सफाईं कर्मचारी के रूप में देखते हैं। चाहे सरकार का सर्वशिक्षा अभियान हो चाहे सफाईं अभियान हो बाल्मीकि बस्तियां इस सबसे अछूती ही रहती हैं।
यूपीए सरकार के समय में राहुल गांधी व अन्य उनके साथी नेताओं ने दो अक्तूबर को गांधी जयंती के अवसर पर अनेक दलित बस्तियों में सामाजिक समरसता लाने के लिए पांच सितारा होटलों से खाना मंगाकर उन बस्तियों के बच्चों के साथ नहीं बल्कि उनके साथ खाना खाया। इस तरह के स्वांग से इन दलितों का उत्थान नहीं होने वाला। इन दलित बाल्मीकियों को रविदास जयंती व बाल्मीकि जयंती पर बाल्मीकि बस्तियों में वुछ रौनक दिखाईं देती है पर इसके बाद इन्हें कोईं नहीं पूछता और यही हाल मौजूदा सरकार का भी है जिसमे सर्वेसर्वा दलितों के साथ भोजन करते दीखते है दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल बाल्मीकियों के सबसे बड़े सहानुभूति वाले नेता बनकर आए उन्होंने मौलिक आधार पर दलितों के विकास का कार्य किया I
देश की कई चुनावी पार्टियों में बाल्मीकि बंधुओं का वोट तो कैश किया परन्तु उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए कोईं कदम नहीं उठाए और हम सभी जानते हैं कि जब किसी वर्ग की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है तभी सामाजिक स्थिति भी सम्मानजनक होती है। आज भी देश में सफाईं कर्मचारियों की तनख्वाह कईं महीनों से नहीं मिली है और निगम और और सरकार गेंद को एक-दूसरे के पाले में पेंकती रहती है ,आखिर परेशांन एक समाज होता है
देश में सरकारी कर्मचारियों के वेतन वृद्धि और सेवा सुविधाओं के सुधार के लिए सात-सात वेतन आयोग गठित किए और उनके वेतनमान और सेवा सुविधाओं में समय के अनुसार संशोधन किए गए पर बाल्मीकि समाज के सफाईं कर्मचारियों के लिए न कोईं आयोग बना और बना तो न ही इन वेतन आयोगों ने सफाईं कर्मचारियों के वेतनमानों और सेवा सुविधाओं पर संशोधन की कोईं सिफारिश की, सिफारिश तो दूर विचार भी नहीं किया। आज भी 80 प्रातिशत सफाईं कर्मचारी दिहाड़ी मजदूर या कांट्रैक्ट कर्मचारी के रूप में काम करते हैं।
राज्य सरकार ने सफाईं कर्मचारी की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला और इसके लिए उचित वेतनमान निति बनाई । इसका यह सकारात्मक परिणाम रहा कि सवर्ण, दलित, बैकवर्ड सभी ने आवेदन किया और कईं हजार भर्तियां बहाल हुईं तथा सामान्य, ओबीसी, अनुसूचित जाति सभी वर्गो के अयथा बहाल हुए। अच्छे वेतन सही सेवा सुविधाओं के कारण चाहे ठावुर, ब्रम्हाण , वैश्य, दलित यह कहने में नहीं शर्माते कि मैं महारष्ट्र सरकार में सफाईं कर्मचारी हूं। यह सामाजिक परिवर्तन बहुत बड़ी क्रांति है देश की सभी सरकारों को इस सकारात्मक सोच के साथ इनके साथ काम करना होगा जिससे सफाईं का काम सिर्प बाल्मीकि समुदाय के लिए आरक्षित न रहे और इस समुदाय को कोईं घृणा की नजर से न देखे।
अब हम 21वीं शताब्दी में प्रवेश कर चुके हैं और हमारी विश्व के सबसे तीव्र गति से उभरती हुईं आर्थिक शक्ति की गिनती होती है परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी अपने जेल मैनुअल सहित अन्य कानून ब्रिटिश इंडिया के काल से बनाए हुए कानूनों से चला रहे हैं और जाति विशेष के कैदियों से जेल के शौचालयों को साफ करवा रहे हैं।
राजस्थान उच्च न्यायालय का आदेश प्राशंसा योग्य है और यह जाति विशेष के प्राति भारतीय समाज की दृष्टिकोण में बदलाव में सहायक होगा।
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